Sunday, April 4, 2010

अंतराग्नि ( PAF २०१०, छात्रावास २, ७, ८ और तानसा हाउस IIT Bombay)




अंतराग्नि...
हर मानव के वजूद की लौ,
उसके सपनों का आधार,
हर मुश्किल से लड़ने का हौसला,
और उसकी विजय का प्रतिबिम्ब...
ये उसकी अंतराग्नि....

चाहे तो तू बुरा है, चाहे तो भला है,
तेरे ही कर्मों की छाया से,
तेरा अस्तित्व निकला है...
गर चाहता है अँधेरे में सूरज की चमक,
और कर्मों में सिंह सा जोश,
तो प्रज्ज्वलित कर...
अपनी अंतराग्नि....

रख विश्वास तू खुद पर,
ना बैठ निर्जीव सा होकर,
तेरी राहों की हर बाधा,
और अंतर्मन की हर व्याधा,
भस्म कर देगी...
ये तेरी अंतराग्नि....