Wednesday, September 29, 2010

अर्ज़ है..

अब क्या बतलाएं हाल-ए-दिल,
किस तरह जीया करते हैं,
कुछ यादें हैं कुछ लम्हों की,
बस उन्हें पीया करते है !!
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कुछ तंग से थे दिल, कुछ तंग से थे हम,
कुछ तंग थी वहां, गलियां वो इश्क की,
निकले जो ढूँढने, दिलवर सा खज़ाना,
जो ख़ाक सा मिला, उसे मुकद्दर समझ लिया !!
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देख लीं बहुत, हसीनाओं की महफ़िल,
लुट जाए जिसपे दिल, कोई ऐसा नहीं मिला,
अब डूबे रहते हैं, शबो-सहर शराब में,
ना अपनों से मुहब्बत है, ना दुश्मन से है गिला !!
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Saturday, September 25, 2010

-उदास लम्हे-




















एक
दौर गुज़र गया,
ना कुछ कहा ना सुना,
बस समेट ले गया
सारे पल..
जाते जाते गिरा दिए कुछ,
दबे कुचले और मैले
उदास लम्हे,
जिन्हें लेकर जीना है अब
समय का एक नया दौर...

Friday, September 24, 2010

"रे मन तू ले चल दूर कहीं.."


रे मन तू ले चल दूर कहीं..

जब पंछी करे पुकार
तो नभ कर ले सोलह श्रिंगार,
जहाँ इन्द्रधनुष की छाया में
जग भर ले रंग हज़ार...

रे मन तू ले चल दूर कहीं..

जहाँ अपनापन हो हर घर में
हर ईश्वर हो हर आँगन में,
जहाँ हर प्यासे राही के लिए
अमृत झलके सबके मन में..

रे मन तू ले चल दूर कहीं..

जहाँ यौवन की हर आँधी में
मुश्किल पत्तों सी उड़ जाए,
और बड़े बुजुर्गों के हाथों में
मासूम सा बचपन खिल जाए...


रे मन तू ले चल दूर कहीं.......

Monday, September 13, 2010

सपने ना गिर जाएँ..


तू चल राही पर ज़रा सम्हल,

मुट्ठी ना खुल जाए,
जो बीने हैं राहों से,
सपने ना गिर जाएँ...

कस के बाँध ले झोली,
जब तू दौड़े जीवनपथ पर,
कहीं तेरे आवेग में ये
झोली ना खुल जाए...

Tuesday, September 7, 2010

मेरे कुछ गीत पुराने..

कुछ रुकी हुई सी बातें,
और अनकहे अफ़साने,
रह रह कर गूँज रहे मन में,
मेरे कुछ गीत पुराने..
कुछ सुर थे बांस की बंसी पर,
कुछ एकतारे की तान पे थे,
जो राग अधूरे ठहरे थे,
वो वीणा की रुन्झान में थे..
ना जाने क्यों ये रुक सी गई,
जो कलम कभी दीवानी थी,
आवाज़ भी मेरी रूठ गई,
हर मौसम जो मस्तानी थी...
कुछ याद नहीं क्या भूल रहा,
शायद कुछ चला था गाने,
रह रह कर गूँज रहे मन में,
मेरे कुछ गीत पुराने..

Wednesday, September 1, 2010

यादों का पुलिंदा




तन्हाई में बैठे हुए अक्सर,
जेहन में कुछ ख्याल उभरते हैं
कुछ अधूरे और कुछ अटूट रिश्ते,
मन के खाली अशांत कौनों को
भरने लगते है..
और देखते ही देखते खुल जाता है
मेरी खोई हुई स्वप्ननगरी की
यादों का पुलिंदा !!!

इस पुराणी जर्जर पोटली के
फटे हुए कोनों से गिरती हैं
कुछ सहज सी सख्सियतें
देती थीं हर मोड़ और उलझनों भरे चौराहे पर
अपने भरोसे का सहारा...
कहते थे जिन्हें साथी हमकदम,
मेरी परछाई से भी वाकिफ थे...

आज समेट लेना चाहता हूँ
उन सारे लम्हों को
जो बिखरे पड़े हैं,
इस फटे और खुले हुए,
मेरी यादों के पुलिंदे से...............