Saturday, November 12, 2011

दस्तक



कुछ अधूरे ख़्वाब 
मेरी दबी हुई ख्वाहिशों की डोर थामे,
क़ायनात की ख़ूबसूरती से गुज़रते हुए,
हज़ारों मंज़िलों पर दस्तक देते है...
हर मंजिल 
एक अनजान पहेली की तरह,
मेरे सवालों का जवाब,
एक नए सवाल से देती है...और 
हमेशा की तरह,
उसका मेरे पास
ना ही कोई जवाब होता है और...

ना ही एक नया सवाल...हर मंजिल से गुज़रते गुज़रते,
ख्वाहिशो को दबाती हुई परत,
और सख्त हो जाती है,
और मेरे अधूरे ख़्वाब....
उन सख्ती से दबी हुए,
मेरी ख्वाहिशों की डोर 
थामे,
कायनात की खूबसूरती से गुज़रते हुए,
फिर किसी नयी मंजिल के दरवाज़े पर 
दस्तक देते है....


(Republished after editing)

Sunday, October 23, 2011

वक़्त और किस्से


किस्से..सुने थे,
कुछ पढ़े थे,
कुछ से हुआ था रू ब रू,
तो कुछ को जी रहा हूँ...
ये किस्से ईंधन हैं,
इन्हीं से वक़्त चलता है..
इस वक़्त के सफ़र के अगले पड़ाव तक-
मैं भी ईंधन बनूँगा,
मैं भी...
एक किस्सा बनूँगा...
कोई सुनेगा, कोई पढ़ेगा...
कोई जीएगा मुझे भी...

Saturday, September 24, 2011

याद पुरानी


वक़्त रेत की सकल बनाकर
मुट्ठी से यूँ निकल गया,
दाना चुंग मेरे आँगन से
कोई पंछी गुजर गया...

कभी पतंगों के पीछे
गाँव की गलियां छानी थीं,
ठंडी बारिश के ओले खाकर
हमने की मनमानी थी...

शाम ढले कुछ जुगनूं उड़कर
हमको बहुत लुभाते थे,
रात सितारों के नीचे बाबा
किस्से हमें सुनाते थे..

आज ये बारिश गीली भर है
ओले सारे सूख गए,
बाबा की बस याद रह गयी
जुगनूं बुझकर डूब गए...

Sunday, September 11, 2011

तू और क़ायनात


उस रोज़ कहीं साहिल में,
दो लहरें 
टकरायीं थीं शायद..

उस रोज़ कहीं फ़लक पे,
दो तारे मिलकर
टूटे थे शायद..

उस रोज़ कहीं गुलशन में.
कोई भंवरा
दीवाना हुआ शायद..

क्योंकि उस रोज़
तेरी आग़ोश में मैंने,
सारी क़ायनात से 
मोहब्बत कर ली थी शायद..

Saturday, September 3, 2011

मदहोश हवा



ये हवा आज खुशनुमां
कुछ मदहोश
बहकी हुई सी,
कुछ अनजाने, कुछ पहचाने
रास्तों से निकलकर
छज्जे पर मेरे-
सांस ले रही है...
उसकी धडकनें
बयां करतीं हैं,
कि आज तुम्हें छूकर गुज़री है... 


Friday, August 26, 2011

सुकून


आज तूने बहुत रुलाया है
अपनी आग़ोश में.. 

कुछ अनजाने ख्यालों से..
..ये दिल कुछ बेचैन था,
कौन से वो लम्हे थे..
अफ़सोस के ना जाने,
कि बस-
राह सी बन गयी,
..मेरे क़दमों से
तेरे क़दमों तलक.....
आज तूने बहुत रुलाया है,
..अपनी आग़ोश का
ये सुकून देकर..

Sunday, July 24, 2011

अक्श

आईने में अक्श मेरा
कुछ अन्जाना,
अधूरा सा लगता है..
दूसरों की नज़रों से 
देखा है जो,
वो एक नहीं...
वहम के आलम में पड़े
शख्सियत के टुकड़ों को
जोड़ लूं,
शायद कोई मुक़म्मल पहचान मिले...

Sunday, June 26, 2011

सालगिरह




फिर वही दिन है,
पहर है, घड़ी है..
फिर कमरे में-
तेरा सुरूर है,
तेरी महक है...
साल भर की-
खुशियों और ग़मों से चुराकर,
कुछ बूँदें बचाई हैं
आंसुओं की...
तेरी यादों पर जमी धूल को
साफ़ करना है,
आज फिर...

Saturday, June 18, 2011

दर्द के ख़ाते


कुछ हिसाब सा बाकी है
दर्द के ख़ाते में..
कुछ बक़ाया है,
कुछ गिरवी है किसी का
मेरे पास...
ये ख़ाते-
खुले में रखता हूँ,
कोई चुराता नहीं..
ना गलते हैं,
ना जलते हैं,
रूह से जुड़कर
रूह बन गए हैं..
ये ख़ाते अब ख़त्म ना होंगे,
क्योंकि-
कुछ हिसाब सा बाकी है अभी....

Friday, June 10, 2011

रोशनदान



रोशनदान से गिरा
वो रौशनी का धब्बा,
जो बाहर की दुनियां के
उजलेपन का अक्श था,
कमरे के अँधेरे को
छन से मिटा गया...
कभी दिल में अँधेरा होगा
तब उसी उजले धब्बे को याद करूंगा,
कोई रोशनदान खोलूँगा,
शायद रोशनी नसीब हो..

Sunday, May 15, 2011

यादों का मल्हम



ये तितलियाँ हैं
या बुलबुलों मैं क़ैद रंग,
अंतसपटल पे बने
मेरे बचपन के चित्रों में
नए रंग भरते हुए
इधर से उधर
तैर रहे हैं हवा में..
और मैं उसी मासूमियत से
उनके पीछे खुली हथेली लिए
भाग रहा हूँ..
सोने दो
बचपन की यादों के बिस्तर पे..
आज का ग़म भुलाना है..

Saturday, April 9, 2011

बिख़री शाम



शाम आज,
कुछ बिख़री हुई,
ताने दे रही है..
अलसायी दोपहर,
दूर से,
आँखों में भरी नींद को,
खींचे जाती है..
सूखी घास को,
ओस की नन्हीं बूंदों का,
इंतज़ार है...
आँख खोलूं,
बिख़री शाम को,
जोड़ना है...
फिर गीली घास पर,
नंगे पाँव चलकर,
रात की दुल्हन का,
स्वागत करूंगा...

Tuesday, March 29, 2011

चिट्टी तस्वीर



..आधे रंग उड़कर
चिट्टे हुए जाते हैं,
तस्वीर तेरी मेरे ज़ेहन में
ग़ायब होने को है..

..ना जाने कितने लम्हे
गुज़रे तेरी दीद को,
ज़ून भरी हर रात यहाँ
काली होने को है...

..इस आलम में तू आये
तेरी मेहर होगी,
वरना ये शख्सियत भी मेरी
चिट्टी होने को है...



मायने:
चिट्टा- सफ़ेद, ज़ून- चांदनी

Thursday, March 24, 2011

तेरा अंदाज़




सावन में ये रस फुहार
मरुभूमि में स्वर्णकणों सा,
हिमगिर कि चोटी पर चमके
पहली उजली सूर्यकिरण सा,
रखता तुझको सदा ही सुद्रढ़
जीवन की हर उठा पटक में,
निष्कंटक कर देता राहें
गर हो ये तेरे जीवन में..
जिसने है पहचान बनाई
उसे ना तुम खोना यारों,
अंदाज़ कहीं जो गुमा दिया
अंजाम बुरा होगा यारों...

Saturday, March 5, 2011

जायका



यूँ ही ठहाकों में गुज़री ज़िन्दगी
तो क्या गुज़री...
कभी ग़म में भी कटे दिन,
तो जायका बदले.

नज़ारा हर रोज़ आसमां का,

चाँद भी बदलता है..
अमावस का अँधेरा तो जी लूँ,
फिर पूनम का गुलशन खिले,
तो समां बदले...

Tuesday, March 1, 2011

पनाहगाह


विचार कभी
कलम कि डोर से छूटकर
बिछड़ जाते हैं..
कुछ नज़्में
मुकम्मल मुकाम कि तलाश में कभी
भटक जाती हैं..

कुछ ऐसों के लिए
पनाहगाह बनी
मेरी डायरी....
उनके मुकाम कि तलाश
जारी है..
किसी की हो तो ले लो..

Tuesday, February 22, 2011

उन्माद



कुछ बदलता वक़्त,
कुछ जज़्बातों की उफ़ान
की अब,
सपनों की गहराइयाँ कम,
और मंजिलें
छोटी लगती हैं..
हर कदम
एक आस जगाता है,
हर लम्हा ये मन
एक और कदम
चलने को मचलता है..
अरे, अभी सांस है,
चलता रह,
मंज़िल क़रीब है
गर आस है...

Friday, February 18, 2011

तजस्सुम



एक नज़्म की तजस्सुम है...

माहताब से दरिया तलक
सारे किरदार कुरेद लिए,
ज़मीं में सोये कुछ के
कुतबे भी पढ़े,
मुज्तरिबी का आलम
बरकरार है फिर भी...

आज फिर,

एक नज़्म की तजस्सुम है...


Saturday, February 12, 2011

हिजरां


कुछ बारीक सी उमस थी आँखों में,
कुछ तुम्हारे दमकते चेहरे की रौशनी,
तुम्हें देख ना सका
जी भरने तक...

बहुत बड़ा पैमाना था
इस बेमेहर हिजरां का, 

आतश की तरह जला था                           
इसे पीकर
हर पल, हर शब..                          
           

अब जाने ना देना
अपनी आगोश से,
वरना दुनियां एक और
शराबी को देखेगी,
आतश की तरह जलते
पैमाने में डूबे हुए...


(बेमेहर= निर्दयी, हिजरां = जुदाई, आतश = आग, शब = रात)

Tuesday, February 8, 2011

एक मुस्कुराहट


कहीं पुरानी यादों की
कड़वाहट थी,
कुछ ज़ख्मी अहसासों के
निशां थे सीने में,
बीते हुए कल के गुनाहों से
आज की एक दूरी थी
दरम्यान,
आधी साँसें ज़िन्दगी की
खर्च कर दीं
ज़ख्मों की नाप तौल में,
और दूरी बढती रही...

अभी अभी कुछ नन्हे

अहसास जगे हैं,
बीते को बीता समझा
और
दूरी को मैंने एक मुस्कुराहट से मिटा दिया...

Friday, February 4, 2011

ज़िन्दगी एक नज़्म है


कुछ ख़्वाब जो देखे
तो हकीक़त को मैंने जाना,
कुछ कदम जो बढ़ाये
तो मंज़िल को पहचाना..
ग़म की आहट ने मुझको
खुशियों का राग सुनाया,
कुछ ऐसे ही ख़यालों ने
ये अहसास कराया-
"ज़िन्दगी एक नज़्म है
जी ले इसे, और
महसूस कर इस नज़्म को
ज़िन्दगी की तरह.."

Saturday, January 29, 2011

अतीत


एक अन्जाना ख़्वाब
बरस रहा है आज कहीं,
कुछ मटियाली यादों से
परतें माटी की,
धीरे धीरे गीली होकर
महक रहीं हैं आज कहीं !!

बीते जीवन के कुछ लम्हे

बरसों पहले दफनाये थे,
इस बारिश के गीलेपन से
उन लम्हों के अंकुर,
सौंधी माटी में से उठकर
फूट रहे हैं आज कहीं !!

रंग बिरंगे सपनों से

कुछ शक्लें रंग डाली थीं,
तन्हाई के आलम में
वो धुंधलाई शक्लें,
तस्वीरों के कोनों से
झाँक रहीं हैं आज कहीं !!


Photo Courtesy- Uttam Sikaria
blog: utmsikaria.wordpress.com

Sunday, January 16, 2011

आओ, पतंग उड़ायें


आओ, पतंग उड़ाएं, कुछ ख़्वाब सजाएँ..
आसमान में ऊंचे उड़ते,
दुनियां की नज़रों में बसते,
कभी उलझती कभी सुलझती,
जीवन की डोर सम्हाले,
कुछ सच्चे ख़्वाब सजाएं...

आओ पतंग उड़ाएं, कुछ साथी बनाएं..
चरखी पकड़ें या पेंच लड़ाएं,
जीवन युद्ध में साथ में साथ निभाएं,
मंज़िल की हर पगडण्डी
और दोराहे पर राह सुझाते,
कुछ सच्चे साथी बनाएं...

आओ, पतंग उड़ायें.....

Monday, January 3, 2011

सर्द सुबह


उत्तर की सर्द सुबह,
आधी सोयी आधी जागी,
रजाई में गुडी हुई
पड़ी थी,
कुछ धुंध कुछ बादलों से,
फ़लक एक रुई के कारखाने सा लग रहा था,
मैंने,
आँगन में आकर
फ़लक को देखा,
तो
बादलों की रजाई के
किसी कोने से,
सूरज ने सर निकाला,

हल्की सी मुस्कराहट भरी धूप के साथ
नए साल की शुभकामनाएं दी,
और वो
नए समय का सूरज,
फिर से
अपनी बादलों की रजाई में,
सर छुपा के गुडी हो गया..
उत्तर की उस सर्द सुबह में.