कुछ हिसाब सा बाकी है
दर्द के ख़ाते में..
कुछ बक़ाया है,
कुछ गिरवी है किसी का
मेरे पास...
ये ख़ाते-
खुले में रखता हूँ,
कोई चुराता नहीं..
ना गलते हैं,
ना जलते हैं,
रूह से जुड़कर
रूह बन गए हैं..
ये ख़ाते अब ख़त्म ना होंगे,
क्योंकि-
कुछ हिसाब सा बाकी है अभी....