Saturday, September 24, 2011

याद पुरानी


वक़्त रेत की सकल बनाकर
मुट्ठी से यूँ निकल गया,
दाना चुंग मेरे आँगन से
कोई पंछी गुजर गया...

कभी पतंगों के पीछे
गाँव की गलियां छानी थीं,
ठंडी बारिश के ओले खाकर
हमने की मनमानी थी...

शाम ढले कुछ जुगनूं उड़कर
हमको बहुत लुभाते थे,
रात सितारों के नीचे बाबा
किस्से हमें सुनाते थे..

आज ये बारिश गीली भर है
ओले सारे सूख गए,
बाबा की बस याद रह गयी
जुगनूं बुझकर डूब गए...

Sunday, September 11, 2011

तू और क़ायनात


उस रोज़ कहीं साहिल में,
दो लहरें 
टकरायीं थीं शायद..

उस रोज़ कहीं फ़लक पे,
दो तारे मिलकर
टूटे थे शायद..

उस रोज़ कहीं गुलशन में.
कोई भंवरा
दीवाना हुआ शायद..

क्योंकि उस रोज़
तेरी आग़ोश में मैंने,
सारी क़ायनात से 
मोहब्बत कर ली थी शायद..

Saturday, September 3, 2011

मदहोश हवा



ये हवा आज खुशनुमां
कुछ मदहोश
बहकी हुई सी,
कुछ अनजाने, कुछ पहचाने
रास्तों से निकलकर
छज्जे पर मेरे-
सांस ले रही है...
उसकी धडकनें
बयां करतीं हैं,
कि आज तुम्हें छूकर गुज़री है...