Thursday, April 12, 2012

फसल हसरतों की


ख़यालों ने ज़हन में
एक ज़मीं सी बनाई है,
हसरतों के बीज 
जो गिराए मैंने-
अहसासों ने बड़े अदद से
सींचा है उन्हें..
जिस्म ने,
लहू के कतरे कतरे से
खींचकर साँसें कुछ-
उग रहे नन्हे पौधों को 
बड़ी शिद्दत से पिलाई हैं..
अब फसल पकने का इंतज़ार है,
ये हसरतें भी-
लहलहायेंगीं,
रंग लायेंगीं कभी..

Friday, April 6, 2012

लम्हे, तेरे इंतज़ार के



इंतज़ार में तेरे
लम्हे जो गुज़ारे,
अहमियत उनकी
आज महसूस की है..
इन्ही लम्हों में
तलाश किया मैंने 
तेरे साथ ख़ुद को..
क़ायनात की खूबसूरती में 
तेरे अक्श को देखा
तो कुदरत को
तेरे दामन की दासी पाया..
फिर तमन्ना है जीने की
उन्ही लम्हों को,
शायद
इसी बहाने 
ये उम्र गुज़र जाए..