Sunday, June 30, 2013

पूरा चाँद, अधूरी चाँदनी






















दरम्याँ रात की ख़ामोशी के
कुछ चीखें सुनाई देती हैं ..
कौन है कमबख्त
जिसकी चीखों में
मुझे कुछ दर्द
कुछ डर सा
महसूस होता है ...
थोडा गौर से देखता हूँ
तो खुद को
सोकर मरे पड़े
इंसानों के
घायल ख्वाबों के बीच पाता हूँ ..
इनके घाव
भरी चांदनी की
तेज चमक में
ना जाने क्यूँ
दिखाई नहीं दिए कभी ..
आज इस पूरे चाँद की
अधूरी चांदनी में
इन घायल ख्वाबों से
रिसता लहू
फिजां के रंग को
लाल किये हुए है ..
और इस रंग में डूबती मेरी रूह
चीख रही है-


किसी हक़ीम के लिए ......

Monday, January 14, 2013

थोड़ा सा और जी लूँ

थोड़ा सा और जी लूँ 
इन बेसब्री के लम्हों को,
लगता है 
तू क़रीब से भी क़रीब आ गई ..
थोड़ा सा और जी लूँ 
इन बेवक़्त लम्हों को,
लगता है 
तू ही क़ायनात में समा गई ..
अब, सूरज भी तू, माहताब भी तू,
पतंगा भी तू और गुलाब भी तू ..

थोड़ा सा और जी लूँ 
मेरी नींद के इन आख़िरी लम्हों को,
हकीक़त से रोशन सुबह में 
आँख खुलने पर 
दम घुटेगा फिर ..